सत्र 2016-17 कार्यशाला आयोजन

संस्कृति मंत्रलय, भारत सरकार के सहयोग से विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा 29 राज्यों के 448 जिलों में भारतीय संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन एवं उत्थान हेतु सफलतापूर्वक कार्यशालाएं आयोजित की गईं। संस्थान के तत्वावधान में सभी जिला केन्द्रों पर नियमावली, सूचना पत्र, परिचय पत्र व फोल्डर तथा प्रमाण पत्र इत्यादि भिजवाकर कार्यशालाओं का आयोजन करवाया गया, जिसका सम्पूर्ण वृत्त इस प्रकार है

कार्यशाला विषय - 1. संस्कृति कला, 2. नैतिक मूल्यों की स्थापना, 3. भारतीय वैज्ञानिक सोच का विकास तथा 4. योग एवं स्वस्थ मानव जीवन।

उपरोक्त विषयों की 1288 स्थानों पर 1402 कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। इनमें विद्या भारती से सम्बद्ध विद्यालयों के साथ-साथ अन्य विद्यालयों (शासकीय, निजी, पब्लिक स्कूल आदि) ने भी प्रतिभाग किया। कुल 6002 विद्यालयों के 7,26,870 विद्यार्थियों को 23,910 प्रशिक्षक / स्रोत व्यक्तियों के रूप में समाज जीवन में प्रतिष्ठित संगीतकार/ कलाकार / नाट्यकर्मी / शिल्पी / योगाचार्य / वैज्ञानिक तथा विज्ञान शिक्षक / संत शक्ति / प्रशासनिक अधिकारी / शिक्षाविद/ साहित्यकार ने प्रेरणा दी। प्रत्येक जिले की कार्यशाला सम्बन्धी विस्तृत जानकारी हेतु यूट्यूब चैनल VBSSS KKR पर 450 लघु फिल्में (Documentory) प्रदर्शित हैं इनका अवलोकन कर सकते हैं।

1. कार्यशालाओं के उद्देश्य -

विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा अन्तर्गत संपूर्ण देश में चार विषयों की कार्यशालाओं के आयोजन किया गया।

संस्कृति युक्त शिक्षा के माध्यम से ही भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाया जा सकता है। इसके लिए जो भी प्रयास संभव हो सकते हैं, उन्हें प्रभावी ढंग से करना चाहिए। विद्या भारती ने बालकों के पंचकोशीय विकास की संकल्पना को लेकर पांच आधारभूत विषयों का चयन किया है।

विभिन्न प्रातों में वहां के पाठ्यक्रम होते हैं उनके साथ-साथ (1) शारीरिक शिक्षा, (2) योग शिक्षा (3) संगीत शिक्षा, (4) संस्कृत शिक्षा तथा (5) नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा, ऐसे पांच आधारभूत विषयों के लिए विशेष प्रयास किए हैं। इन्हीं विषयों को लेकर एक प्रकल्प तैयार किया गया है जिसमें (1) भारतीय मूल्यों तथा भारतीय संस्कृति की स्थापना एवं विकास हेतु संगीत, संस्कृति, नृत्य, नाटक, लोक-नृत्य, चित्रकला, प्रश्नमंच और निबंध प्रतियोगिता के माध्यम से शैक्षिक कार्यशालाओं का संचालन, (2) भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित शैक्षिक कार्यशालाओं का संचालन, (3) 21वीं शताब्दी में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियों को वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रदर्शन द्वारा बालकों में विज्ञान के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करना तथा (4) विभिन्न कार्यशालाओं के आयोजन द्वारा योग तथा मनुष्य के स्वस्थ जीवन में उसकी उपयोगिता के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना सम्मिलित हैं। देशभर के लगभग सभी जिला केन्द्रों पर यह कार्यशालाएं आयोजित करना इस प्रकल्प का लक्ष्य है।

2. कार्यशालाओं के विषय -

  • (क) दो दिवसीय कार्यशाला: भारतीय संगीत, शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य, नाटक जैसे रंगमंचीय कार्यक्रम, चित्रकला, प्रश्नमंच, निबन्ध लेखन, भारतीय संस्कृति व लोक कलाओं से सम्बन्धित विभिन्न प्रस्तुतियों की तैयारी इत्यादि।
  • (ख) एक दिवसीय कार्यशाला: भारतीय जीवन मूल्य
  • (ग) एक दिवसीय कार्यशाला: वैज्ञानिक सोच का विकास एवं 21वीं शताब्दी के संदर्भ में वैज्ञानिक तकनीक का प्रदर्शन।
  • (घ) एक दिवसीय कार्यशाला: योग और शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में जागरुकता।

3. प्रतिभागिता प्रमाण पत्र-

प्रत्येक कार्यशाला के सभी प्रतिभागियों के लिए प्रतिभागिता प्रमाण पत्र की व्यवस्था की गई है। मुद्रित प्रमाण पत्र संस्थान के कुरुक्षेत्र कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराये जाएंगे।

4. प्रतिभागियों की संख्या और पात्रता / अर्हता इत्यादि

  • प्रत्येक कार्यशाला में कक्षा 4 से 12 तक के छात्र-छात्रयें ही प्रतिभागिता कर सकते हैं। न्यूनतम व अधिकतम का मापदण्ड नहीं है। अधिक से अधिक सहभाग हो सके अतः जिले में चलने वाले निकटवर्ती विद्यालयों के बच्चों को भी आग्रहपूर्वक सम्मिलित करें। कार्यक्रम की संरचना इस प्रकार से की जाये कि आयु वर्ग के अनुसार अधिकतम बच्चों की प्रतिभागिता सुनिश्चित की जा सके। कार्यशाला के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य सम्बन्धित सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाए।

कार्यशाला आयोजन की राष्ट्रीय समीक्षा बैठक में संकलित उपलब्धियाँ एवं भविष्य की कार्ययोजना -

संपूर्ण देश में आयोजित चार प्रकार की कार्यशालाओं की समीक्षा बैठक दिनांक 20 से 22 फरवरी, 2017 तक कुरुक्षेत्र में विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, संस्कृति भवन, कुरुक्षेत्र में आयोजित की गई। इस समीक्षा बैठक में विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के विभिन्न कार्यकारिणी सदस्य जैसे माननीय अवनीश भटनागर, सचिव, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ॰ गोविन्द प्रसाद शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष-विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, माननीय जे॰ एम॰ काशीपति, राष्ट्रीय संगठन मंत्री-विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, माननीय श्रीराम आरावकर, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री-विद्या भारती, माननीय डॉ॰ जैनपाल जैन, कोषाध्यक्ष-विद्या भारती, माननीय डॉ॰ गोविन्द चन्द्र महान्त, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री-विद्या भारती, माननीय सुरेन्द्र अत्रि, महामंत्री-विद्या भारती उत्तर क्षेत्र, डॉ॰ रामेन्द्र सिंह, निदेशक, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र उपस्थित रहे।

इस समीक्षा बैठक में विभिन्न प्रान्तों से आए हुए कार्यशाला संयोजकों ने अपने अनुभव एवं विद्यालय स्तर पर आयोजित कार्यशालाओं की उपलब्धियों को पूरे देश से आए हुए 336 कार्यशाला आयोजकों, संयोजकों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों आदि से सांझा किए। इस समीक्षा बैठक में पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा (माननीय भाई जी) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति का बोध समाज व्यापी हो इसके लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री जे॰एम॰काशीपति जी ने अपने उद्बोधन में भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिए कार्ययोजना का निर्धारण एवं क्रियान्वयन करना प्राथमिकता होनी चाहिए विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सभी भारतवासियों को एक अभेद्य शक्ति के रूप में संगठित होकर कार्य करना चाहिए ताकि भारतीय संस्कृति विश्व में अपनी पहचान बना सके। श्री गोविन्द प्रसाद, अध्यक्ष, विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान ने संस्कृति मंत्रलय के इस प्रकल्प को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के लिए विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान को बधाई दी और कहा कि संस्थान के लोगों में इस कार्य के करने से आत्मविश्वास बढ़ा है और पूरे राष्ट्र में इससे बड़े कार्य करने की क्षमता का आभास हुआ है। इन कार्यक्रमों से विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि समाज के अन्य विद्यालयों में भी विद्या भारती के कार्यक्रमों को सराहा गया है और सहज अनुसरण करने की इच्छा व्यक्त की है। इन कार्यक्रमों में देश के 6000 से अधिक विद्यालयों की प्रतिभागिता यह बताती है कि अच्छे कार्यों के लिए दूसरे शिक्षा संस्थान विद्या भारती के विद्यालयों के साथ काम करने में गौरव महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि गत 65 वर्षों से विद्या भारती समाज आधारित संगठन के रूप में कार्य कर रही है और इन कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार को भी विद्या भारती के प्रयासों के विषय में विस्तृत जानकारी मिल सकी है। उन्होंने कहा कि संस्कृति शिक्षा का आधार बननी चाहिए इसलिए देश बोध, समाज बोध, संस्कृति बोध द्वारा अध्यात्म बोध हो इसका प्रयास निरन्तर किया जाना चाहिए तथा समाज एवं शासन को भी इसका समय-समय पर बोध कराना आवश्यक है।

इस तरह की कार्यशालाएँ क्षेत्र की विशेषता के अनुसार उस प्रान्त में विषयों की विविधता एवं क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों द्वारा की जानी चाहिएं। समाज में सम्मान, स्नेह, प्रेम, आत्मीयता आवश्यक है उसके लिए ज्येष्ठ लोगों का सान्निध्य लिया जाना चाहिए। यथासंभव, हो समाज के बलबूते पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।

समीक्षा बैठक के अगले सत्र में माननीय सुरेश जी सोनी एवं विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ॰ गोविन्द प्रसाद शर्मा जी उपस्थित रहे। पूरे राष्ट्र से आए प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए माननीय सोनी जी ने कहा कि दुनिया का एक स्वरूप है जिसमें पहाड़, जंगल, जल, तारे, पशु-पक्षी एवं मानव जीवन है परन्तु मनुष्य की ही एक विशेषता है कि वह अन्य प्राणियों से भिन्न है और उसकी अपनी एक मर्यादा है। ईश्वर ने उसे स्वतंत्र इच्छा शक्ति, विवेक, बुद्धि विशेष रूप में प्रदान की है जिससे कि मनुष्य की जीवन यात्र निरंतर चलती रहती है। मनुष्य अपने उत्कृष्ट कार्यों से नर से नारायण बन जाने की क्षमता रखता है जो अन्य जीवों में नहीं है। इस प्रक्रिया को शिक्षा और संस्कार कहा जाता है एवं भारतीय परम्परा में शिक्षा और संस्कार का महत्व जीवन-मूल्य और उदात्त दृष्टि का निर्माण करना होता है जो किसी राष्ट्र की संस्कृति के रूप में उसकी पहचान होती है। अतः शिक्षा का उद्देश्य पूर्णतः की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। मनुष्य जहां, जिस राष्ट्र क्षेत्र में जन्म लेता है वह उसकी सांस्कृतिक पहचान होती है। संस्कृति के उत्कृष्ट ज्ञान रूपी दर्शन को अध्यात्म कहा गया है। अतः किसी राष्ट्र में रहने वाले लोगों को उस राष्ट्र का भोगौलिक बोध, राष्ट्र में रहने वाले समाज का बोध, धरती के प्रति भावना तथा जीवन दृष्टि से संस्कृति का बोध एवं विश्व दृष्टि से अध्यात्मिकता का बोध होना अति आवश्यक है। यह बोध बालकों में हो इस पर विचार होना चाहिए और इस दिशा में कार्य करना चाहिए उदाहरणस्वरूप देश के साथ समाज का भावनात्मक व रागात्मक बोध। अण्डमान जेल सावरकर को दो काले पानी की 25-25 साल की सजा हुई तो जेलर ने कहा सावरकर 50 वर्ष बाद जेल से बाहर निकलेंगे। सावरकर ने पूछा कि क्या 50 वर्ष अंग्रेज़ रहेंगे? यह उनके सेल्युलर जेल की चिन्ता नहीं, बल्कि देश बोध को दर्शाता है। हिमालय पर्वत देवात्मा हो जाता है। सह्याद्रि, छत्रपति शिवाजी, नदियां, महापुरुषों की जन्म स्थली इन सबसे जब रागात्मक सम्बन्ध जुड़ जाता है तो ऐसा हो जाता है कि लगाव की भावना विलुप्त नहीं होती। इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द 4 वर्ष विदेश रहने के बाद जब स्वदेश लौटने लगे तो अंग्रेज़ ने पूछा अब आपको अपनी मातृभूमि कैसी लगेगी। विवेकानन्द ने कहा मेरे लिए अब तीर्थ बन गयी है।

समाज बोध पर उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि हम इस बात पर ध्यान दें कि हमारे परस्पर के सम्बन्ध क्या हैं। मौलिक कल्पना हमारी क्या थी। सम्पूर्ण जगत ही हमारा परिवार है, यह हमारा वसुधैव कुटुम्बकम् का परिवार भाव था। इसमें छुआछूत आ गई। अब यह परिवार भाव कैसा विकृत हो गया। हमारे बालकों में समाज के प्रति संवेदना चाहिए। समाज का बोध होना चाहिए अर्थात समाज के प्रति भावनात्मक लगाव होना चाहिए। अपनी संस्कृति को उन्नत करना जैसे हम बीज को भी उन्नत करते हैं। इस उन्नत करने का अभिप्राय क्या? विवेकानन्द ने अमेरिका के लोगाें को अपनी संस्कृति के विषय में बताते हुए कहा कि आपके देश में नाई और दर्जी लोगों को सभ्य बनाते हैं जबकि हमारे देश में चरित्र सभ्य बनाता है। नेहरू जी ने भी कहा था कि हमारे यहां धन मानक नहीं। व्यवहारयुक्त संस्कारों से संस्कृति बनती है। उन्होंने कहा कि जो दोष हैं वे समाप्त हों। जीवन में संस्कार आये आत्मवत् सर्वभूतेषु यह विशेष गुण होना ही हमारी संस्कृति है। विदेशियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी इस भाव को देखा।

हमारी कला हृदय से सम्बन्धित है साहित्य, कला और संगीत से विहीन व्यक्ति पशु के समान कहा गया है। संगीत में स्वरों की दुनिया हमारे मस्तिष्क और हृदय में स्पंदन उत्पन्न करती है इसलिए भारतीय संगीत तनाव मुक्त करता है। इटली के तानाशाह मसोलेनी को तनाव के कारण नींद नहीं आती थी। वहां ओंकार ठाकुर को बुलाया गया। उनके संगीत से उसको नींद आ गयी। जिसकी सर्वत्र सराहना हुई। पाश्चात्य संगीत कुम्हलाया हुआ पौधा है। भारतीय मूर्तिकला भी विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला मानी गई है। यहां चित्र बहुत कुछ कह देता है। मूर्तियाँ हमारा जीवन बदल देती हैं। कहा गया है कि जिस नज़र से हम देखते हैं वैसा ही हमारा भाव बन जाता है यह आँख का मनोविज्ञान है - नजर ऊँची की तो दुआ बन गई, नज़र नीची की तो हया बन गई। नज़र तिरछी की तो अदा बन गई। इसलिए संस्कृति द्वारा दृष्टिकोण का बदलाव लाना बहुत आवश्यक है। हमारे पारिवारिक सम्बन्ध और परिवार की संकल्पना भी संसार में सबसे श्रेष्ठ और दृढ़ है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा इसी प्रकार की संवेदना उत्पन्न करनी चाहिए।

अपने सम्बोधन में श्री जे॰एम॰ काशीपति जी ने कहा विद्या भारती ने शासन के सहयोग से देशभर में जो कार्यशालाएं की हैं, उससे समाज को न केवल विद्या भारती की कार्यप्रणाली का ज्ञान हुआ है बल्कि समाज को संस्थान के माध्यम से भारतीय संस्कृति के बारे में जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। समाज में संस्कृति का व्याप होना चाहिए। जैसी संस्कृति समाज को मिलती है, समाज उसी में ढलता जाता है। इसलिए भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होना अत्यंत आवश्यक है। आज स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध, हिंसा आदि बहुत से दुर्गुण समाज में व्याप्त हैं जबकि समाज को परम्परा, दया, करुणा आदि की नितान्त आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि समाज में सद्गुणों को पहुंचाने का कार्य केवल हम लोग कर रहे हैं बल्कि विद्या भारती का कार्य आज दिख रहा है। इसका सजीव उदाहरण विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा शासन के साथ मिलकर देशभर में चार प्रकार की कार्यशालाओं का सफल आयोजन किया जाना है। इन कार्यशालाओं से लगभग आठ लाख विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं और उनमें भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्य, वैज्ञानिक सोच एवं योग शिक्षा रूपी ऊर्जा का संचार हुआ है।

समीक्षा बैठक के द्वितीय सत्र में विभिन्न प्रान्तों से आए कार्यशाला संयोजकों ने कार्यशालाओं की उपलब्धियों को सबके सामने रखा। इस कड़ी में तेलंगाना - दक्षिण मध्य क्षेत्र से आए संयोजक ने कहा कि - जिलाधिकारी, कमिश्नर, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला जज, राजनीति क्षेत्र के व्यक्ति उपस्थित रहे। अन्य विद्यालयों के छात्रें और शिक्षकों ने सहभाग किया। पूर्ण सहयोग का आश्वासन, अनुभव बहुत अच्छा है। प्रत्यक्ष कला के सम्बन्ध में करके बताया गया। संस्कृति बोध परियोजना को और हमारे कार्यों की सराहना की।

कर्नाटक से श्री धनराज जी ने बताया कि हमारे यहां विद्या भारती के 28 विद्यालय हैं। प्रतिभागी एवं अतिथि इन कार्यशालाओं में हुई विद्या भारती की सरस्वती वन्दना से अत्यधिक प्रभावित हुए और सी-डी-की मांग की। अन्य विद्यालयों में भी उन्होंने वन्दना प्रारम्भ करवाने के विषय में बात की। श्री राघवेन्द्र जी ने बताया सरकारी विद्यालयों ने इन कार्यशालाओं में प्रतिभाग किया - इन कार्यशालाओं में मंचित रामायण, महाभारत के प्रसंगों को सराहा।

आन्ध्र के संयोजक श्री श्रीनिवास ने बताया कि अन्य विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने अपने छात्रें और शिक्षकों को प्रशिक्षित करने हेतु आचार्यों की मांग की। शास्त्रीय संगीत और भारतीय वाद्ययन्त्रें के सम्बन्ध में अपनी जिज्ञासा के साथ सहयोग का आश्वासन दिया। सरकारी विभाग के अधिकारियों, सरकारी विद्यालयों के अध्यापकों ने बहुत ही सहयोग किया।

केरल से आए श्री संतोष कुमार ने बताया कि प्रथम बार ऐसे कार्यक्रमों को करने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रार्थना सभा से बहुत ही प्रभावित हुए। सराहना की। अन्य विद्यालयों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया। बहुत सहयोग प्राप्त हुआ। दूसरे विद्यालयों ने विद्याभारती के कार्यों में सहयोग करने की बात कही।

तमिलनाडू से श्री स्थाणुमूर्ति जी ने बताया कि विद्याभारती के अतिरिक्त तीन विद्यालयों ने भाग लिया। ग्रीष्मावकाश के दिनों में उनके छात्रें को कुछ प्रशिक्षण भी दिया गया।

असम से आए प्रतिनिधि ने बताया कि दो कार्यशालाएं सम्पन्न हुई। छात्रें द्वारा सम्पन्न की गई वन्दना से बहुत लोग प्रभावित हुए। ऐसे कार्यक्रम तो सरकारी विद्यालय में आयोजित नहीं किए जाते हैं।

त्रिपुरा के श्री माधव पोतदार ने बताया कि सरकारी विद्यालय में कार्यक्रम किया, बहुत अच्छा अनुभव रहा। संस्कृति कार्यशाला की बहुत प्रशंसा हुई।

मणिपुर से श्री हुकुम सिंह ने बताया कि कार्यशालाओं में बच्चों में सीखने की बहुत ही जिज्ञासा थी। आये हुए अभिभावक भी सीखना चाहते थे। अन्य विधाओं के विशेषज्ञों द्वारा बहुत ही अच्छा प्रभावी प्रशिक्षण दिया गया।

बंगाल से आए संयोजक ने बताया कि 200 शिक्षकों ने विद्या भारती द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में विषय-विशेषज्ञ के रूप में अपना योगदान दिया। समाज के लोगों से भी भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ। अधिक से अधिक सरकारी विद्यालय में कार्यक्रम सम्पन्न हुए और विज्ञान की कार्यशाला में वैज्ञानिक भी उपस्थित रहे।

ओडिशा से श्री भागवत जी ने बताया कि भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन, संरक्षण कार्यशाला में एक तबला वादक ने सिखाने के लिए कहा। 10-15 बालक उनसे सीख रहे हैं। कार्यशाला में प्रान्त प्रभारी उपस्थित रहे। श्री कैलाश जी के अनुसार ओडिशा कला का बहुत बड़ा केन्द्र है। अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ भी कार्यशालाओं में उपस्थित रहे। विशेषज्ञ बहुत ही प्रभावित हुए। भुवनेश्वर का कार्यक्रम बहुत ही प्रभावी रहा। हमारे छात्रें को बहुत ही प्रभावी ढंग से सिखाया गया। ओडिशा सरकार के भी अधिकारी कार्यक्रमों में उपस्थित रहे। भगवान जगन्नाथधाम के सदस्यों का भी सहयोग कार्यशाला में प्राप्त हुआ।

विदर्भ से आए श्री जोशी जी ने बताया कि झुग्गी-झोंपड़ी में पहुँचे। शास्त्रीय संगीत, कलाओं का परिचय हुआ। कलाकारों को मंच प्राप्त हुआ। जिलाधिकारी, शिक्षाधिकारी भी कार्यशालाओं में उपस्थित रहे। सौ- सुवर्णा पावड़े ने बताया कि कार्यशालाओं के माध्यम से बालिकाओं को आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। सौ- सुनीता जी ने बताया कि सभी कार्यशालाएँ उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुई। अकोला की महापौर उपस्थित रही। योग की कक्षाएं प्रभावी रही। प्लास्टिक के उपयोग न करें छात्रें ने इस बात का संदेश प्रसारित किया। गाँवों में अच्छा प्रभाव रहा।

देवगिरि के श्री राजेन्द्र निकुम्भ ने कहा कि कार्यक्रमों में सभी संगठनों के व्यक्ति उपस्थित रहे। जिससे विद्या भारती का स्वरूप सामने आया। सभी शिक्षिकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

गुजरात के श्री बाबू भाई रथवी ने बताया ग्रामीण क्षेत्रें में भी कार्यशालाएं की गईं। बंशीवादक विषय विशेषज्ञ ने कार्यशाला में प्रतिभाग किया। कार्यशाला को छोटे-छोटे स्थानों पर करने के लिए हम प्रयासरत हैं।

राजगीर के श्री बजरंगी प्रसाद ने बताया कि एक कार्यशाला प्रशिक्षकों की हुई। विषय-विशेषज्ञों को खोजा गया। इनसे सम्पर्क हुआ। विद्वानों से सम्पर्क बढ़ा। आधारभूत विषयों की दृष्टि से इसका लाभ मिलेगा। कबाड़ से जुगाड़ का विषय प्रभावी रहा। अन्य विद्यालयों से सम्पर्क किया गया। वैज्ञानिकों से भी सम्पर्क हुआ। अन्य विद्यालयों की भी सहभागिता होनी चाहिए।

श्री संजीव कुमार पाठक ने कहा कि संगीत के क्षेत्र में जो विधाएँ विलुप्त हुई, उनको देखने व सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।

उत्तर बिहार से श्री नकुल कुमार वर्मा के अनुसार नवीन और पुरानी पीढ़ी का समन्वय कार्यशालाओं में दिखाई दिया। छठ पर्व की छटा देखने को मिली। वन्दना, वन्देमातरम् का भी प्रभाव बढ़ा। मासिक गीतों का अभ्यास कराया। हस्तकलाओं का अभ्यास कराया। भावनात्मक चित्रें को दिखाया। अन्य विद्यालयों से आए छात्र भी सबके साथ समरस हुए। योग गुरु का प्रभाव पड़ा। लोकगीत, प्रभावी बने।

श्री आशुतोष जी के अनुसार कला संगम का कार्यक्रम हुआ। छोटे बच्चों के कार्यक्रम देखकर नगर के लोग प्रभावित हुए।

गया के संयोजक श्री कौशलेश जी ने कहा कि यह कार्यक्रम अनवरत होना चाहिए। अभिभावकों का भी प्रशिक्षण होना चाहिए।

श्री पंकज कुमार जी ने बताया कि एन॰सी॰सी॰ के कैडेट भी कार्यशाला में भाग लेने हेतु उत्सुक हुए। इन्हें योग का प्रशिक्षण दिया गया। योग के कार्यक्रमों को भी जोड़ा गया।

श्री मृत्यु×जय जी ने कहा कि विज्ञान सोच की कार्यशाला के समापन के बाद भी विद्यार्थियों में उत्साह के कारण इस तरह के सतत् कार्यक्रम चल रहे हैं।

श्री मदन जी ने कहा कि मुस्लिम और ईसाई प्रशिक्षक भी इस कार्यशाला में आये। आगे भी सहयोग देने का आश्वासन दिया।

श्री महेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि इस कार्यक्रम के पश्चात अपने विद्यालय को शिक्षाधिकारी का सहयोग प्राप्त होने लगा। बिना कैसेट के सहयोग से मंच पर कार्यक्रम होने लगे।

रांची के श्री कृष्णकान्त जी ने कहा कि लोकगीत गायक श्री मुकुन्द नायक जी का समय प्राप्त हुआ। इस वर्ष उन्हें पद्मश्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ। संस्कृत भाषा के प्रभाव को बढ़ाना चाहिए।

श्री रमेश राय ने बताया कि 05 सितम्बर को कार्यशाला गोरखपुर में सम्पन्न हुई। प्राविधिक संस्थान के कुलपति उपस्थित थे। बहुत ही प्रभावित हुए। छोटे स्तर पर समीक्षा की जानी चाहिए।

कानपुर के श्री विजय शंकर जी ने कहा कि बालकों द्वारा लोकगीतों के गायन से श्रोताओं के मन को प्रभावित किया। चित्रकूट विश्वविद्यालयों के दोनों कुलपति कार्यशाला में उपस्थित रहे और बालकों को सम्बोधित किया।

अवध से आए श्री शिव बहादुर शास्त्री ने बताया कि वैज्ञानिक सोच की कार्यशाला में रात्रि में ऊर्जा की बचत करने का प्रयोग किया। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला में 4 आई-ए-एस- अधिकारी उपस्थित रहे।

काशी के श्री अनिल तिवारी ने बताया कि अच्छी कार्ययोजनाओं के कारण बड़ी सफलता प्राप्त हुई। मुस्लिम बालिकाओं ने भी गीत सीखे। ग्रामीण क्षेत्रें की विशेष चिन्ता करनी चाहिए।

जम्मू कश्मीर के श्री समीर जी ने बताया कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह कार्य चुनौती भरा था। लेह की कार्यशाला में 11 विद्यालयों के छात्रें ने भाग लिया। इसमें मुस्लिम छात्रें ने एवं बौद्ध छात्रें ने कार्यशाला में विशेष रूप से हिस्सा लिया। कलाकारों को भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

बहिन राधिका शर्मा ने बताया कि गाँवों में कार्यशाला की। पाँच सरकारी विद्यालयों ने भाग लिया। यहाँ के प्रधानाचार्यों ने भी सराहना की।

हिमाचल के श्री लेखराज ने बताया कि सरकारी विद्यालयों का सहयोग मिला। राज्य सरकार के द्वारा पुरस्कृत शहनाई वादक उपस्थित हुए और बच्चों को शहनाई वादन की शिक्षा दी।

हरियाणा के विद्या भारती के अतिरिक्त 13 अन्य विद्यालयों ने भाग लिया। गोहाना के क्रिश्चयन विद्यालयों के छात्रें ने भाग लिया। जिले के कलाकारों को सम्मानित किया गया।

पंजाब से आए श्री हरीश जी ने कहा कि अन्य विद्यालयों ने सहयोग प्रदान किया। पतंजलि योग संस्थान के लोग भी उपस्थित थे।

भविष्य की कार्ययोजना -

राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा बैठक में सभी शिक्षक, प्राचार्य एवं संयोजकों ने एकमत से इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के कार्यक्रम विद्यालयों में निरन्तर जारी रखने चाहिएं। समीक्षा बैठक के माध्यम से भी यह निकल कर आया कि इस तरह के संस्कृति के संरक्षण, संवर्द्धन एवं विकास के लिए कार्यशालाओं का आयोजन विद्या भारती को अपनी शिक्षण संस्थानों एवं समाज के सहयोग से निरन्तर करते रहना चाहिए। अतः समाज के सहयोग से किए जाने वाले कार्य विशेषकर भारतीय संस्कृति को बचाए रखने एवं इस अमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ी को उपहारस्वरूप देने के लिए सबसे उपयुक्त विधि है।

इस तरह के कार्यक्रम पर्यावरण, जल एवं ऊर्जा संरक्षण, कृषि अनुसंधान की योजना इत्यादि विषयों पर विद्यालय स्तर पर निरन्तर आयोजित की जानी चाहिए। जिससे विद्यार्थियों में प्रारम्भ में ही पर्यावरण के प्रति संवेदना की स्थापना की जा सकती है। जिसके दूरगामी परिणाम अच्छे समाज के रूप में होने की पूर्ण संभावनाएं हैं। भविष्य में की जाने वाली कार्यशालाओं में दूरस्थ क्षेत्रें में कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई जानी चाहिए।

हमारे अधिक से अधिक आचार्यों को सी-सी-आर-टी- से प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। नैतिक कार्यशाला से कानून-पालन विषय को भी जोड़ा जाना चाहिए जिससे सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं को कम किया जाना एवं अच्छे समाज का निर्माण करना संभव हो सकता है।

समीक्षा बैठक के अंत में सभी ने यह महसूस किया कि कार्यशालाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए इस तरह की कार्यशालाएं और बड़े पैमाने पर की जानी चाहिएं। इन कार्यशालाओं के बाद भारतीय संस्कृति पर आधारित कला की विधाओं के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाना चाहिए जिससे कि कला और संस्कृति के प्रति भावी पीढ़ी में और अधिक रूझान एवं उसकी विविधताओं को समझने एवं अपनाने की रूचि पैदा की जा सकेगी। इन कार्यशालाओं की सफलता इस बात से आंकी जा सकती है कि देश के कुल 7,00,000 से अधिक विद्यार्थियों ने भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्य, वैज्ञानिक सोच एवं योग शिक्षा सम्बन्धित कार्यशालाओं में बढ़-चढ़ कर भाग लिया एवं उनमें एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। कार्यशालाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए यह अनुमोदित किया गया कि पंचकोशीय विकास क्रम के शिक्षण को विद्यालय स्तरीय पाठ्य-क्रियाक्लाप के अन्तर्गत राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जाना चाहिए। जिससे विद्यार्थियों का समुचित विकास कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके।

सत्र 2017-18 कार्यशाला आयोजन

सत्र 2017-18 में 1144 कार्यशालाओं का निम्नलिखित विषयानुसार आयोजन हुआ -

  • 1. सांस्कृतिक विषयक
    250
  • 2. भारतीय नैतिक मूल्य
    261
  • 3. वैज्ञानिक सोच का विकास
    275
  • 4. योग और स्वास्थ्य
    308
  • अन्य विषय
    50

इन कार्यशालाओं में विद्या भारती के 1469 विद्यालयों के साथ-साथ 2197 अन्य सम्पर्कित विद्यालयों ने भी प्रतिभाग किया। जिसमें विद्या भारती के विद्यालयों के 2,79,431 विद्यार्थी तथा अन्य संपर्कित विद्यालयों के 64,748 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इसमें 5167 प्रशिक्षक एवं अतिथि संख्या 6075 रही। इस प्रकार इन कार्यशालाओं से लाभार्थी संख्या 3,51,034 रही। प्रतिभागियों एवं विषय-विशेषज्ञों को प्रमाण-पत्र कुरुक्षेत्र कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए।

संस्कृति मंत्रालय का लोगो प्रयोग करने की अनुमति - संस्कृति मंत्रालय द्वारा कार्यशालाओं हेतु लोगो को प्रयोग करने की स्वीकृति प्राप्त हुई जिसका प्रयोग कार्यशालाओं में संस्थान के लोगो के साथ बैनर, निमंत्रण-पत्र इत्यादि पर किया गया।